पाकिस्तान और सऊदी अरब के बीच हुए एक अहम समझौते के तहत सऊदी अरब हर साल पाकिस्तान को 1.5 अरब डॉलर के कच्चे तेल की मदद फिर से शुरू करने के लिए तैयार हो गया है. इसके आलावा सऊदी अरब पाकिस्तान में निवेश की योजना पर भी फिर काम शुरू करेगा. ये समझौता इसी साल जुलाई से लागू होगा.
नवंबर 2018 में सऊदी अरब पाकिस्तान को कुल 6.2 अरब डॉलर का कर्ज़ और ऑयल क्रेडिट (3.2 अरब डॉलर) देने को तैयार हुआ था. लेकिन कश्मीर के मुद्दे पर दोनों देशों के बीच बात बिगड़ गई.
और अगस्त 2020 में सऊदी अरब ने पाकिस्तान को क़र्ज़ की एक तय रकम लौटाने को ही नहीं कहा, बल्कि उसे दिया जाने वाले ऑयल क्रेडिट भी रद्द कर दिया.
अब इसके क़रीब देढ़ साल बाद दोनों देश एक बार फिर हाथ मिलाने को राज़ी हुए हैं.
क्या है वजह?
कुछ हलकों में ये चर्चा है कि पाकिस्तान के साथ फिर से हाथ मिला कर सऊदी अरब ईरान के प्रभुत्व को चुनौती देना चाहता है.
लेकिन जानकार मानते हैं कि एक बार फिर पास आने के दोनों देशों के फ़ैसले को मौजूदा वक्त के बदलते भू-राजनीतिक परिस्थितियों के मद्देनज़र देखा जाना चाहिए.
पाकिस्तान और सऊदी अरब के बीच ऐतिहासिक तौर पर रिश्ते अच्छे रहे हैं. दोनों का रिश्ता दशकों पुराना है, दोनों के बीच सुरक्षा मामलों के समझौते हैं और शीत युद्ध के दौरान दोनों साथ रहे हैं.
सऊदी अरब में भारत के राजदूत रहे तलमीज़ अहमद कहते हैं कि 1950 के दशक से दोनों के बीच रक्षा संबंध रहे हैं, जो कमज़ोर नहीं हुए हैं. पुराने रिश्ते होने के कारण दोनों में कभी-कभी थोड़ा-बहुत फ़र्क आना स्वाभाविक है, लेकिन उनका बुनियादी रिश्ता कभी टूटता नहीं हैं.
वो कहते हैं पाकिस्तान की तुलना में सऊदी अरब के साथ भारत के रणनीतिक तौर पर अहम संबंध हैं लेकिन ये रिश्ते अधिक पुराने नहीं हैं. दोनों के रिश्तों में प्राथमिकता निवेश और सुरक्षा है और सऊदी इस पर भी समझौता नहीं करेगा.
यही कारण है कि एक तरफ़ जब वो पाकिस्तान के साथ भी रिश्ते बेहतर कर रहा है, तो दूसरी तरफ़ भारत के साथ भी वो संबंध बेहतर करने की कोशिश में है.
जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में पश्चिम एशिया और मध्यपूर्व मामलों के विशेषज्ञ प्रोफ़ेसर एके पाशा कहते हैं कि इसके पीछे बड़ी वजह हाल के वक़्त में आए बदलाव हैं.
वो बताते हैं, “जमाल ख़ाशोज्जी की हत्या और डोनाल्ड ट्रंप के जाने के बाद सऊदी अरब की घरेलू राजनीति में काफ़ी बदलाव आए हैं. ट्रंप के शासनकाल में क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान को अमेरिका से मदद मिलती रही थी, लेकिन बाइडन के आने के बाद सऊदी अरब और ईरान के लिए अमेरिका की विदेश नीति में 180 डिग्री का बदलाव आया है.”
“दूसरी तरफ सऊदी अरब को उम्मीद थी कि रक्षा मामलों में इसराइल के साथ उसके रिश्ते बेहतर होंगे, लेकिन ऐसा भी नहीं हुआ. ऐसे में प्राकृतिक तौर पर पाकिस्तान उसके लिए अहम हो गया. वैसे भी पाकिस्तान ज़रूरत पड़ने पर फौजें भेज कर सऊदी की मदद करता रहा है और वो पहले से पाकिस्तान को एक बड़े मददग़ार के रूप में देखता रहा है.”
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