जून ८ को गूगल, फेसबूक समेत अन्यों को समन दिए जाने पर विचार होना है | हाल ही मैं, यानी 17 जनवरी 2011 को दिल्ली उच्च न्यायालय ने गूगल, फेसबूक सहित 21 सामाजिक नेटवर्किंग साइटों से कहा कि धार्मिक भावनाओं को आहत करने वाली आक्रामक सामग्री को ब्लॉक करने के लिए एक तंत्र या तरीका तैयार करे | न्यायालय के इस निर्देश ने इन्टरनेट के विषय में हमारी समझ को ले कर गंभीर प्रश्नों को उठाया है, क्योंकि इन्टरनेट जिसे हम नया मीडिया भी कह सकते हैं, पारंपरिक मीडिया से पूरी तरह अलग है, अतः इसे सेन्सर करने के तरीके पारंपरिक नहीं हो सकते |
इंटरनेट, की विशेषता है द्वि-दिशात्मक सूचना अथवा जानकारी का प्रवाह, जबकि पारंपरिक मीडिया में सूचना के उत्पादन के तरीके विशेषतः एक-दिशात्मक होते हैं | भारत में पारंपरिक मीडिया का का प्रभुत्व है, अतः मीडिया को रेगुलेट करने के तरीके भी उसे प्रकार तैयार किये गए हैं | यह पारंपरिक मीडिया, अर्थात द्वितीय विश्व युद्ध के बाद आने वाले मीडिया जैसेकि टेलीविजन, रेडियो, न्यूज़पेपर, मैगजीन के साथ नहीं होता, जहाँ सूचना के उत्पादन के स्रोत सीमित होते हैं | एक बिंदु पर सूचना को रोक दीजिये और, सूचना पूरी तरह ब्लाक हो गयी |
इंटरनेट के साथ ऐसा नहीं है | इन्टरनेट में न केवल सूचना के उत्पादन के स्रोत अनंत हो सकते हैं, बल्कि इसकी संभावनाएं और प्रकार भी अनंत हो सकती है | सबसे कमाल की बात यह है कि, यही इन्टरनेट की संरचना है | और इसी कारण इंटरनेट न केवल सूचना को पूरी तरह ब्लाक करना असंभव बना देता है | साथ ही यह पारंपरिक मीडिया के सूचना के उत्पादन एवं प्रवाह के साथ साथ मीडिया उपभोक्ताओं की क्षमताओं को चुनौती देता है |
गूगल ने अभी के लिए कुछ सामग्री को ब्लाक कर दिया है, परन्तु क्या यह तरीका स्थायी है? यही सामग्री एक दिन के भीतर कई अन्य ब्लॉग, डिस्कशन फोरम, ऑनलाइन डोक्स, ग्रुपस में बड़ी आसानी से पुनः प्रकाशित हो सकती है | क्या ऐसे में यह पूरी तरह सुनिश्चित हो सकेगा, की उस सूचना तक पहुँच पूरी तरह ब्लाक हो गयी ?
इंटरनेट ने जानकारी के उपभोक्ता की भूमिका को मात्र रिसीवर से बदल कर एक निर्माता या सूचना के उपयोगकर्ता की भूमिका प्रदान की है, और एक ऐसा माध्यम आसानी से उपलब्ध कराती है जहाँ यह नया उपयोगकर्ता सूचना का उत्पादन और प्रसार करता है, बिना किसी के पास दरख्वास्त लगाये | यह लाजमी है कि, इस भूमिका परिवर्तन के साथ उपयोगकर्ता की मुक्त अभिव्यक्ति की संभावनाएं बढ़ जाती हैं, और साथ ही बढ़ जाती है मुक्त अभिव्यक्ति पर लगी रोकों को पार करने की संभावनाएं क्योंकि इंटरनेट पर सेन्सर को धोका देने (circumventing censor) के तरीके और आइडेन्टिटी स्वप्पिंग के तरीके आम हैं |
इंटरनेट पर प्रकाशित की जानेवाली वाले सामग्री पर रोक लगाने के विषय पर पिछले कुछ वर्षों से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बहस जारी है | विशेषज्ञों का मानना है कि उपयोगकर्ता की भूमिका को सेन्सर किये बिना इंटरनेट को सेन्सर नहीं किया जा सकता | इलेक्ट्रॉनिक फ्रंटियर फाउंडेशन के संस्थापक, Cypherpunks मेलिंग सूची, और सिग्नस solutions, यूज़नेट में ऑल्ट.* के निर्माता GNU परियोजना के प्रमुख योगदानकर्ता, गिल्मोर का कहना है, “इंटरनेट सेंसरशिप को एक नुकसान के रूप में समझता है और, नए मार्ग खोज लेता है ” | कई तकनीकी विशेषज्ञों द्वारा गिल्मोर के इस बयान कि सत्यता को प्रमाणित किया गया है |
यह संभव नहीं कि इंटरनेट की बुनियादी प्रकृति पर रोक लगाए बिना, इस पर उपलब्ध खबर को पूरी तरह से सेंसर किया जा सके | फेसबुक और गूगल ने कोर्ट के सामने कुछ येही दलील पेश की | यदि ब्लोक्स का इस्तेमाल किया जाता है तो, चाहे अनचाहे ऐसी जानकारियां भी ब्लाक हो जाएगी जो नहीं होनी चाहिए | जैसेकि सेक्स शब्द को ब्लाक करने का मतलब है वोटर कार्ड भी आप नहीं देख सकते | यह बात इससे भी प्रमाणित होती है कि चीन ने इंटरनेट पर पहरे को सुनिश्चित करने के लिए ४०,००० से अधिक लोगों को सिर्फ इसी काम पर लगाया है | क्या भारत भी ऐसा ही करना चाहता है या, ऐसा कर सकता है ?
वैसे यदि ऐसा ही कुछ करने के विषय में सोचा जा रहा है, तो चीन के उदाहरण को थोडा और बेहतर जानना होगा | सबसे मज़े की बात यह है कि, चीन जितनी ब्लोच्किंग की चेष्टाएँ करता है, उतना ही अधिक लोग, इन ब्लोच्क्स को पार करने के तरीके खोज निकलते है | टेकडर्ट में प्रकाशित खबर के अनुसार, ऐसा करके जनवादी गणतंत्र की स्थापना के बाद से प्रथम बार अधिक से अधिक चीनी आज इंटरनेट का उपयोग जानकारी पाने के लिए कर रहे हैं | और इन्टरनेट ने उन्हें अधिक से अधिक करने के लिए संवाद और खुद को अभिव्यक्त करने की क्षमता दी है |
इस मोड़ पर, यह समझना महत्वपूर्ण है कि क्या यह संभव कि उपयोगकर्ता पर रोक लगाए बिना इंटरनेट को सेंसर किया जा सकता है, जो कि सूचना को विभिन्न रूपों प्रकाशित एवं पुनः प्रकाशित करने कि क्षमता रखता है | क्या इन्टरनेट द्वारा प्रदान कि गयी इस नई भूमिका को सेंसर किये बिना यह हो सकता है |
भारत में तकनीकी एवं दूरसंचार के क्षेत्र में तेजी से विकास हो रहा है | iPad, ITAB, smartphone इत्यादि इंटरनेट के अधिक उपयोग कि तर्ज पर बाज़ार में उपलब्ध हो रहे हैं | पिछले साल भारत में 81 मिलियन इंटरनेट उपयोगकर्ताओं थे | इस संख्या का 2015 तक 237 मिलियन तक पहुंचने का अनुमान है | यह संकेत साफ़ है कि इंटरनेट कहीं जाने वाला नहीं है | संचार का यह माध्यम अभी लम्बे समय तक रहेगा | अतः किसी को पसंद हो या मात्र व्यवसायिक मजबूरी हो, यह नयी भूमिका भी बनी रहने वाली है |
इंटरनेट ने जानकारी बनाने और उसे बाँट पाने को निजी बातचीत, कारोबार और सरकार का एक मूलभूत पहलू बना दिया है | इसने न केवल लोगों का नज़रिया मीडिया का उपभोग करने से बदल कर उपयोग करने में तब्दील कर दिया है, बल्कि, उसे सूचना पर एक तरह का कन्ट्रोल भी दिया है | अब वह एक निर्माता है, जो हर जानकारी को अपनी मर्जी अनुसार बाँट सकता है |
इंटरनेट घोषणा करता है कि “गुटेनबर्ग युग” का अंत हो रहा है और साथ ही केंद्रीकृत जानकारी के उत्पादन और यूनिडायरेक्शनल बमबारी की प्रक्रिया के अंत का समय आ गया है | यह लाजमी है कि हम इस नए मीडिया की प्रकृति को समझें और यह भी समझें कि इसे विनियमित करने के लिए नए नियमों की जरूरत होगी