Apple Samsung hold same share in smartphone market now

 

Q4 2014 Global smartphone shipments
Q4 2014 Global smartphone shipments

The fight between Apple and Samsung is getting interesting day by day. Now Apple is in straight competition of Samsung in terms of smartphone share in the market.

According to latest data revealed by Strategy Analytics, during the Q4 2014, Apple caught up with Samsung’s growing sale with the latest launch iPhone 6 and 6 Plus.

Global smartphone shipments grew 31 percent annually from 290.2 million units in Q4 2013 to a record 380.1 million in Q4 2014. Strong growth was seen in markets like China, India and Africa.

Apple shipped 74.5 million smartphones worldwide and captured a record 20 percent marketshare in Q4 2014, increasing from 18 percent a year earlier.

Samsung shipped 74.5 million smartphones worldwide and captured 20 percent marketshare in Q4 2013, dipping from 30 percent in Q4 2013.

Samsung continues to face intense competition from Apple at the higher-end of the smartphone market, from Huawei in the middle-tiers, and from Xiaomi and others at the entry-level.

Reserve price for 2100MHz Band is Rs 3705crore per MHz.

The Union Cabinet, chaired by the Prime Minister, has approved the proposal of the Department of Telecommunication (DoT) to proceed with auction in 2100 MHz band alongwith 800, 900 and 1800 MHz bands. The Reserve price approved for 2100 MHz Band is Rs 3705 crore pan-India per MHz.

A 5 MHz Block will be offered in all service areas except Jammu & Kashmir, Bihar, Himachal Pradesh, West Bengal and Punjab. Thus a total of 85 MHz in 17 Licensed Service Areas (LSAs) is being put to auction.

The estimated revenues from the auction of 2100 MHz Band are Rs.17555 crore of which Rs.5793 crore is expected to be realized in the current financial year.

Payment Terms

Successful Bidders shall make the payment in any of the following two options:

(a) Full upfront payment within 10 days of declaration of final price or pre-payment of one or more annual instalments; or

(b) deferred payment, subject to the following conditions: (i) An upfront payment; of 33 percent in the case of 2100 MHz band.

(i) An upfront payment; of 33 percent in the case of 2100 MHz band.

(ii) There shall be a moratorium of two years for payment of balance amount of one time charges for the spectrum, which shall be recovered in 10 equal annual instalments. (

(iii) The first instalment of the balance due shall become due on the third anniversary of the scheduled date of the first payment. Subsequent instalment shall become due on the same date of each following year. Prepayment of one or more instalments will be allowed on each annual anniversary date of the first upfront payment, based upon the principle that the Net Present Value of the payment is protected.

Who can apply?

i) Any licensee that holds a Unified Access Service (UAS)/ Cellular Mobile Telephone Service (CMTS) / Unified License (Access Service) UL(AS) / UL licence with authorization for Access Services for that Service Area; or

(ii) any licensee that fulfils the eligibility for obtaining a UL with authorization for AS; or

(iii) any entity that gives an undertaking to obtain a UL for access service authorisation through a New Entrant Nominee as per the DoT guidelines/licence conditions.

can bid for the Spectrum (subject to other provisions of the Notice).

कैसे होंगे साल 2015 में लांच होनेवाले स्मार्टफ़ोन? जानिए भारतीय बाज़ार के 9 रुझान

Apple iPhone
एप्पल आईफ़ोन

भारतीय स्मार्टफ़ोन बाज़ार में क्या होंगे साल 2015 के लिए रुझान? किस प्रकार की नई तकनीक के इर्द-गिर्द आएंगे नए फ़ोन, और क्या उम्मीद लगा सकते हैं हम स्मार्टफ़ोन बनानेवाली कंपनियों से?

भारत में स्मार्टफ़ोन बाज़ार बहुत तेज़ी से बढ़ रहा है। कंपनियां हर महीने नए-नए उत्पाद और नई तकनीक लिए धांसू स्मार्टफ़ोन ला रही हैं जिन्हें देख कर लगता है कि तकनीकी क्षेत्र में हम कहीं आगे निकल आए हैं। बहुत तेज़ गति से नए मानदंड बनाए जा रहे हैं और उससे भी ज़्यादा तेज़ी से इन्हें तोड़ कर नए रिकार्ड कायम किए जा रहे हैं।

कैसा रहा 2014?

2014 में हमने देखा इस किनारे से उस किनारे तक के डिस्पले फ़ोन (edge-to-edge display), कर्वड फ़ोन, चार-कोर वाले तेज़ चलने वाले फ़ोन, बेहतरीन कैमरा क्वालिटी जो डीएसएलआर को भी मात दे दे और सबसे ज़रुरी बात- बेहद सस्ते दाम। लगभग हर स्मार्टफ़ोन बनानेवाली कंपनी ने अपने उत्पादों के लिए भारत को महत्वपूर्ण मार्केट माना।

फ़ोन की बिक्री में जहां एक ओर खासी तेज़ी आई, वहीं उनके दामों में लगातार गिरावट दर्ज की गई। मार्केट में सस्ते फ़ोन जैसे मोटो ई, शियोमी रेडमी 1S, मोटो जी और एप्पल आईफ़ोन छाए रहे।

साल की शुरुआत में ही मोटोरोला ने मोटो ई, जी और एक्स के साथ ने भारत में धमाकेदार एन्ट्री की। मोटो ई के साथ मोटोरोला ने अपने विरोधियों नई चुनौतीकायम की (2014 की शुरूआत में मोटोरोला गूगल के ही ख़ेमे में थी।)।

उधर एंड्रॉएड के वर्जन में समानता लाने के उद्देश्य से गूगल ने भारत में देशी कंपनियों के साथ मिलकर लांच किया एंड्रॉएड वन। हालांकि एंड्रॉएड वन ने कोई ख़ास रिकार्ड तो नहीं बनाया परन्तु सस्ते फ़ोनों की फेहरिस्त में एक और नाम जुड़ गया।

इसके बाद, एक के बाद एक धड़ाधड़ सस्ते फ़ोन बाज़ार में उतारे गए। आलम ये कि मोज़िला ने भी 2,000 रुपये में स्मार्टफ़ोन लाकर खलबली-सी मचा दी। रिकार्डतोड़ सफ़लता हासिल नहीं करने के बावजूद इस फ़ोन को कामयाब माना गया, क्योंकि इतने सस्ते दाम पर अभी तक कोई दूसरी कंपनी फ़ोन नहीं ला पाई है।

सरकार बदली, बदला बाजा़र

कांग्रेस को टा-टा बाय-बाय करते हुए देश की जनता ने भारतीय जनता पार्टी के हाथों देश की बागडोर सौंप दी। सरकार से व्यापार बढ़ाने की ओर ख़ास तव़ज्जो का भरोसा पाकर कंपंनियों में भी उत्साह आया।

गांव-देहात से ले कर शहर-कस्बों को इंटरनेट से जोड़ने के लिए फ़ोन बनानेवाली और अन्य कंपनियां लग पड़ी। गूगल और फेसबुक ने भारत में इंटरनेट के विकास का रो़डमैप बनाया, और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मिले। ई-कॉमर्स में भारी इन्वेस्टमेन्ट फंड की घोषणाएं हुई।

केन्द्र सरकार ने बाज़ार के ग्रोथ में तेज़ी नहीं आ पाने की वजह – स्पेक्ट्रम की कमी, जैसा कि कंपनियों का दावा था- का जवाब ख़ोज निकाला। 3जी और 4जी स्पेक्ट्रम की नीलामी जल्द ही होनेवाली है। (हम अभी इस बहस को नहीं छेड़ेंगे कि अधिक बेसप्राइज़ रखने पर बाजा़र में नुक़सान होने के अंदेशा है या नहीं।) इतना ही नहीं डिफेन्स स्पेक्ट्रम को भी अलग कर लेने की कोशिश पर काम चल रहा है।

मोटे तौर पर कहना ग़लत ना होगा कि फ़ोन के बाज़ार के साथ, इसे ढ़ंग से चला सकने के अन्य विषयों पर भी नज़र गई है,जिसके नतीजतन साल 2015 में स्मार्टफ़ोन बाजा़र तेज़ी केवल बढ़ेगी, घटेगी नहीं।

भारत के बाज़ार के विषय में क्या अटकलें लगाई जा सकती हैं 2015 के लिए?

विश्व के चौथी बड़ी रिसर्च संस्थान, जीएफके के पूर्वानुमान अनुसार विश्व के दूसरे सबसे तेज़ गति से प्रगति कर रह भारत में साल 2014 में स्मार्टफ़ोन की बिक्री में आई तेज़ गति थमने के कोई आसार नहीं हैं। 2014 के मुकाबले 2015 में बिक्री में 18 प्रतिशत की बढ़त होने का अनुमान है। (पढ़ें रिपोर्ट)

परन्तु देशों की रैंकिंग में बदलाव नज़र आ सकता है । पिछले साल चीन विश्व का सबसे तेज़ गति से प्रगति करने वाला देश रहा था। 2015 में हालात अलग होने की अटकलें हैं, जिसके चलते भारत विश्व का सबसे तेज़ी से बढ़ने वाला देश बन जाएगा। जीएफके की रिपोर्ट के अनुसार 2014 में भारत में यूएसडॉलर 30.0 के तकनीकी साजोसामान की बिक्री हुई है जबकि चीन में 199.0 यूएसडॉलर की। साल 2015 में उम्मीद है कि भारत में 34.8 यूएसडॉलर के तकनीकी उत्पादों की बिक्री होगी जबकि चीन में 200.8 यूस डॉलर की।

जैसै कि मैंने पहले कहा इस साल स्मार्टफ़ोन बाजा़र तेज़ी केवल बढ़ेगी और नए एवं बेहतर उत्पाद उपभोक्ताओं को रिझाने के लिए लाए जांगे। कई सारे नए, नई तकनीक दिखाते उत्पाद लांच होने को पहले ही तैयार खड़े हैं। परन्तु क्या-क्या दिखेगा हमें भारतीय बाजा़र में, साल 2015 में। क्या होगी इस इंडस्ट्री की दिशा? मैं आपको बताने जा रही हूं कि इस साल क्या नया आ सकता है बाजा़र में और क्या हो सकते हैं रूझान?

Google Nexus 6
गूगल नेक्सस 6

1. बड़े और बेहतर डिसप्ले

 

साल 2014 के लिए हमारा अनुमान था, कि 5-इंच स्क्रीन वाले फ़ोनों की भरमार रहेगी। यह ट्रेंड 2015 में भी जारी रहेगा।

गौर करें तो एप्पल, जो अब 4-इंच के आईफ़ोन 5 और 5S लेकर आया था, साल 2014 में 4-इंच से आगे बढ़कर 4.7-इंच और 5.5-इंच के दो आईफ़ोन- 6 और 6प्लस बाजा़र में उतार चुका है। 4.95-इंच के नेक्सस 5 से आगे बढ़ते हुए गूगल ने 5.93 का नेक्सस 6 लांच किया। इसके साथ ही बहुतों ने पिछले साल 5-इंच या 4.7-इंच के स्क्रीनवाले फ़ोन लांच किए।

आइडीसी की सितम्बर 2014 की रिपोर्ट को देखें तो वैश्विक बाज़ार में वर्ष 2014 में 1750 लाख और वर्ष 2015 में 3180 लाख फैबलेट (5.5-इंच से 7-इंच तक की स्क्रीन साइज़) की बिक्री का अनुमान था।

केवल स्क्रीन के साइज़ में ही नहीं वरन् डिसप्ले की क्वालिटी में भी बेहतरी की उम्मीद है इस साल। सस्ते फ़ोन, जिन पर अभी WVGA (800 x 480 पिक्सल) या HD (1280 x 720 पिक्सल) का डिसप्ले रिज़ोल्यूशन रहता है, उन पर इस साल के खत्म होने से पहले FullHD (1920 × 1080 पिक्सल) डिसप्ले रिज़ोल्यूशन आ जाएगा।

अधिकतर सस्ते फ़ोन पर स्क्रीन प्रोटेक्शन के बिना ही आते हैं, परन्तु 2015 में इसके भी बदलने का आसार हैं। जैसे-जैसे प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी कंपनियां मज़बूत फ़ोन लांच करने से पीछे नहीं हटेंगी।

मंहगे फ़ोन की बात करें तो 2014 में 2K (2048 × 1536 पिक्सल) के फो़न अधिक देखने को नहीं मिले। जहां सैमसंग ने अपना गैलैक्सी नोट 4 2K डिस्पले के साथ उतारा, वहीं एलजी ने जी3 और लेनोवो ने Vibe Z2 Pro 2K डिसप्ले के साथ लांच किया। परन्तु ये सारे मंहगे दामों पर लांच किए गए। इस साल 2K थोड़ा सस्ते होने की पूरी उम्मीद है। हमें 4K (4096 × 3072 पिक्सल) डिसप्ले रिज़ोल्यूशन दिखाते उत्पाद भी दिखेंगे इस साल, हालांकि ये अभी महंगे ही रहेंगे।

 

2. मानें ना मानें कर्वड फ़ोन आ रहे हैं

 

2013 में सैमसंग और एलजी ने दो फ़ोन लांच किए जो कर्वड डिसप्ले के साथ थे। दोनों ने ही डिसप्ले पैनल के साथ छेड़-छाड़ करने की बजाय फ़ोन की पूरी बॉडी को ही मोड़कर कर्वड रुप देना सही समझा। परन्तु 2014 में सैमसंग ने गैलैक्सी नोट एज लांच कर दिखा दिया कि बॉडी को बनाए रखते हुए वह सिर्फ डिसप्ले पैनल को मोड़कर एक नया ही गैजेट तैयार कर सकता है।

एक दूसरी ख़बर के अनुसार इस कोरियाई कंपनी ने बहुतायत में ओएलईडी डिसप्ले का उत्पादन शुरू कर दिया है, जिसे हम इसके आनेवाले फ़ोन और टैबलेट में देख सकेंगे (शायद साल के अंत तक)। मार्च के महीने में यह कंपनी गैलैक्सी S6 लांच कर सकती है, जिसमें गैलैक्सी नोट एज से आगे बढ़ते हुए हम दो तरफ़ से मुड़े डिसप्ले स्क्रीन देख सकते हैं।

पर वाकई ऐसे गैजेट जिन्हें हम फ्लैक्सीबल या फोल्ड कर सकनेवाले हैन्डसेट कह सकें, उनके लिए अभी हमें इंतज़ार करना पड़ेगा। 2016 तक इस प्रकार के गैजेट बाज़ार में आने की पूरी उम्मीद है।

 

3. बहुत हो गया स्टॉक एंड्रॉएड 

 

पिछले कुछ वर्षों से बहुत सी भारतीय कंपनियां स्टॉक एंड्रॉएड यानि कि बिना किसी लीपा-पोती के, एंड्रॉएड  ओएस पर आधारित फ़ोन लांच करती आ रही हैं। सस्ते दामों में फ़ोन उपलब्ध कराने के लिए यह ज़रुरी भी है। परन्तु इससे ख़रीदार को कोई ख़ास लाभ नहीं मिल पाता। मिसाल के लिए यदि पांच कंपनियां पांच अलग-अलग फ़ोन स्टॉक एंड्रॉएड के साथ लांच करती हैं तो ख़रीदार के लिए इनमें से किसी भी फ़ोन के इस्तेमाल का अनुभव समान ही होगा।

अतः कंपनियों के लिए अगला बड़ा कदम होगा अपने ग्राहकों कुछ नया और अलग दे पाना। इस दिशा में नया यूज़र इंटरफ़ेस या नया ओएस लाना लाज़मी हो जाता है, जो अपनी ख़ुद की अलग पहचान बनाने में मददग़ार हो।

सैमसंग टाइज़न ज़ी1
सैमसंग टाइज़न ज़ी1

सैमसंग बाजा़र में नेचर यूज़र इंटरफ़ेस के साथ एंड्रॉएड  ओएस पर आधारित फ़ोन लाती है। हालिया नक्त में इसमे तय किया है कि उसे अब एंड्रॉएड  से आगे बढ़ने की ज़रूरत है। कंपनी का सारा ध्यान अब टाइज़न नाम के नए ओएस पर है जिस को आधार बनाकर इसने स्मर्टवॉच और टीवी लांच किए हैं।

साल 2014 के मध्य से माइक्रोमैक्स ने एंड्रॉएड ओएस के साथ अधिक फीचर्स देने शुरु किए (इन्हें हम अभी नया यूज़र इंटरफ़ेस नहीं कह सकते।) साल के अंत तक कंपनी ने यूरेका वाईयू साइनोजेन मॉड फ़ोन भारत में लांच कर दिया। 2015 में उम्मीद है कि कंपनी और नए फीचर्स लेकर आएगी, नए यूज़र इंटरफ़ेस की आस लगाना भी ग़लत नहीं होगा।

ज़ोलो ने अपना ख़ास हाईव यूज़र इंटरफ़ेस 2014 में ही लांच कर दिया, जिसके बाद आशा है कि स्पाइस, लावा, कार्बन और मैक्स भी अपने नए यूज़र इंटरफ़ेस पर काम करना शुरू कर दें।

सॉफ्टवेयर के बाद यदि हम हार्डवेयर की बात करें तो हमें और उपभोक्ताओं की ज़रूरत अनुसार फ़ोन भी 2015 में देखने के लिए मिलेंगे। गूगल ने फ़ोनब्लॉक का पहला काम-करनेवाला मॉडल बना लिया है और इस वर्ष के खत्म होने से पहले बिक्री के लिए इनहें बाज़ार में उतार देगा।

अफ़वाहों की मानें तो शियोमी और ज़ेडटीई भी इसी तरह के उपभोक्ता-अनुरूप फ़ोन लाने की ज़द्दोज़हद में लगे हुए हैं। साल के अंत तक इनकी ओर से भी नई घोषणा की अटकलें लगाई जा सकती हैं।

 

4. धांसू प्रोसेसर

 

साल 2013 में सैमसंग और 2014 में मीडियाटेक ने बाज़ार में ऑक्टा-कोर प्रोसेसरवाले फ़ोऩ उतारे। इस प्रोसेसर के साथ आए फ़ोन महंगे ही रहे परन्तु 2014 तक यो फ़ोन सस्ते होने शुरू हो गए।

प्रोसेसर के खेल में बड़ा मोड़ तब आया था जब एप्पल ने सितम्बर 2013 में 64-बिट प्रोसेसर के साथ आईफ़ोन 5S और 5C लांच किया। इसी प्रोसेसर के साथ बाद में साल 2014 में आईफ़ोन 6 और 6 प्लस लांच किए गए। इस प्रोसेसर ने जैसे मार्केट का रूख़ ही पलटकर रख दिया।

अप्रैल 2014 में क्वॉलकॉम ने तथा जुलाई 2014 में मीडियाटेक ने 64-बिट प्रोसेसर की घोषणा कर दी। 2015 में क्वॉलकॉम स्नेपड्रैगन 600 सीरीज़ में बेहद तगड़े दो प्रोसेसर लेकर आ रहा है। सभी से आगे बढ़ते हुए सैमसंग ने फरवरी 2014 में ही 64-बिट प्रोसेसर की घोषणा कर दी जिसका इस्तेमाल इसने गैलेक्सी नोट 4 में किया। एल जी भी अपने फ़ोन का प्रोसेसर खुद ही बनाना चाहता है। अक्तूबर 2014 में सैंमसंग की प्रतियोगी इस कंपनी ने 64-बिट न्यूक्लन प्रोसेसर की घोषणा की।

इस दिशा में हो रहे काम को देखते हुए कहना मुनासिब होगा कि इस साल लांच होनेवाले महंगे फ़ोनों में हम क्वॉड-कोर या ऑक्टा-कोर 64-बिट प्रोसेसर देखेंगे, और सस्ते फ़ोनों में ऑक्टा-कोर 32-बिट प्रोसेसर और क्वॉड-कोर प्रोसेसर देखेंगें।

 

5. कैमरे में क्या होगा खास?

 

10,000 रुपये से नीचे मिलनेवाले फ़ोनों में 8 मेगापिक्सल और 6000-7000 रूपये से कम दाम में मिलनेवाले फ़ोनों में 5 मेगापिक्सल कैमरे 2014 में छाए रहे (इनमें कुछ अपवाद रहे)। परन्तु 2014 में 20.7 मेगापिक्सल कैमरे वाले फ़ोन कुछ महंगे ही रहे। फ्रंट कैमरे की बात करें तो 8 मेगापिक्सल और 5 मेगापिक्सल वाइड एन्गल लेंस के सेल्फी कैमरे फ़ोनों ने भी ग्राहकों को खूब लुभाया।

2015 में आशा करते हैं कि 10,000 रुपये से नीचे मिलनेवाले फ़ोनों में हमें 13 मेगापिक्सल कैमरे और महंगे फ़ोनों में 20.7 मेगापिक्सल या इससे अधिक के कैमरे देखने के लिए मिलेंगे। यही नहीं फोटोग्राफ़ी का शौक रखनेवालों का लिए ख़ास कैमरों जैसे कि 4के कैमरे के साथ फ़ोन बाज़ार में उतारे जाएंगे।

सोनी ने 2014 में 21 मेगापिक्सल Exmor RS IMX230 कैमरा सेन्सर बनाया है जो कि 4K डिस्पले रिज़ोल्यूशन में वीडियो ले सकता है। मार्च के महीने में लांच होनेवाले एक्सपीरिया Z4 में इस कैमरा सेंसर के होने की अटकलें हैं। सोनी के जवाब में ओम्नीविज़न ने 2014 में 23.8 मेगापिक्सल और 2.4 मेगापिक्सल तक फोटो ले सकनेवाला OV23850 कैमरा सेन्सर लांच कर दिया है, जिसके भी इसी साल फ़ोन में आने की उम्मीद है।

2013 में सैमसंग एनालिस्ट में दिखा गए रोडमैप के अनुसार कंपनी अभी 16 और 20 मेगापिक्सल के फ़ोन कैमरों पर काम कर रही है। 2014 में गैलेक्सी S5 और गैलैक्सी नोट 4 में 16 मेगापिक्सल का कैमरा था। 2015 में सैमसंग 20 मेगापिक्सल कैमरा फ़ोन लांच कर सकती है।

यहां यह बताना भी महत्वपूर्ण है कि 2015 में क्वॉलकॉम स्नेपड्रैगन 600 सीरीज़ में जो दो प्रोसेसर लेकर आ रहा है, इनमें फ़ोन में 3D चित्र ले सकने के लिए 21 मेगापिक्सल स्टिरियोस्कोपिक कैमरे भी चलाए जा सकते हैं।

 

6. सस्ते और बेहद सस्ते फ़ोन

 

इंटरनेट से दूर विश्व की अन्य 1 ख़रब जनता को इंटरनेट से जोड़ने की कवायद ने 2014 में तेज़ी पकड़ी है। इसका एक महत्वपूर्ण कारण है भारत जैसे देशों में ऐसे फ़ोन सस्ते में उपलब्ध हो पाना जो इंटरनेट से कनेक्ट हो सकें। इस दिशा में बढ़ते हुए गूगल ने एक ओर एंड्रॉएड  वन लांच किया तो देशी कंपनियों ने जव़ाब में सस्ते फ़ोनों की जैसे झड़ी ही लगा दी।

मोटोरोला की मोटो ई और जी, नोकिया एक्स और बाद में लूमिया 625, इधर शियोमी का रेडमी 1S और नोट, मोज़िला का फायरफ़ॉक्स फ़ोन, एलजी और एचटीसी के सस्ते फ़ोन सब जैसे एक ही बड़ी-सी रेस का हिस्सा थे। माइक्रोमैक्स, कार्बन, लावा, इन्टेक्स, सेलकॉन, आईडिया, ज़ोलो, डाटाविंड, विकेडलीक्स आदि कंपनियां ने भी इस रेस का हिस्सा बन प्रतिस्पर्धा बढ़ाई। सोनी और सैमसंग ने भी थोड़े सस्ते फ़ोन बाज़ार में उतारने में भलाई समझी।

परन्तु मोज़िला का फायरफ़ॉक्स फ़ोन की तरह और उसके बाद इन्टेक्स के इक्का-दुक्का फ़ोन के सिवा कोई भी 3,000 रूपये से कम में फ़ोन लांच नहीं कर पाया। परन्तु साल 2015 में इस आंकड़े के बदलने के आसार हैं। उम्मीद है कि 3,000 रूपये से कम में ड्यूअल-कोर फ़ोन लांच होंगे जिसके बाद अधिक से अधिक लोग इंटरनेट से जुड़ेगें।

 

7. एंड्रॉएड  अपनी प्रभुता कायम रखेगा, परन्तु इतनी आसानी से नहीं।

 

यदि हम 2011, 2012, 2013 और 2014 के ऑपरेटिंग सिस्टम के आंकड़ो को देखें तो पता चलता है कि एंड्रॉएड  ने अबाध्य तरक्की की है।

(स्रोतः आईडी के क्वार्टर 2 के आंकड़े)
(स्रोतः आईडी, दूसरी तिमाही 2014 के आंकड़े)

आईडीसी द्वारा जारी किए गए तीसरी तिमाही, 2014 के आंकड़ो के अनुसार दुनिया की 5 बड़ी पर स्मार्टफ़ोन  कंपनियां है- सैमसंग, एप्पल, शियोमी, लेनोवो और एलजी हैं। इनमें से एप्पल को छोड़ कर सभी एंड्रॉएड  ओएस (39 प्रतिशत मार्केट शेयर) पर हैं, जबकि एप्पल जो आईओएस का इस्तेमाल करता है,उसके पास मात्र 11.7 प्रतिशत मार्केट शेयर है।

भारतीय बाज़ार की ओर निगाह फ़ेरें तो सबसे अधिक हैण्डसेट बेचने वाली कंपनियां हैं सैमसंग, माइक्रोमैक्स, लावा, कार्बन और मोटोरोला, ये पांचों कंपंनियां एंड्रॉएड  ओएस का इस्तेमाल करते हुए बाज़ार में अपना रुतबा कायम किए हुए हैं। इन 5 कंपनियों के पास बाज़ार का 65 प्रतिशत हिस्सा है।

लोगों ने एंड्रॉएड  को ख़ूब अपनाया है वहीं आईओएस को कम ही लोगों ने अपनाया है, ब्लैकबेरी और विंडो ने भी कोई ख़ास तरक्की नहीं की। परन्तु 2014 के सितम्बर के बाद से आईफ़ोन की बिक्री में कुछ तेज़ी दर्ज की गई। हम यह भी कह सकते हैं कि चीन के बाजा़र में एप्पल के आने से एंड्रॉएड  को तगड़ी चुनौती मिली है।

अन्य ओएस की बात छेड़ें तो साल के खत्म होने से पहले माइक्रोसॉफ्ट ने दुनिया के सामने अपने नया और एकदम अलग विंडो 10 रख दिया। एप्पल सिरी की ही तरह कोरटोना वाइस एसिसटेंट के साथ यह नया ऑपरेटिंग सिस्टम 2015 के अंत तक आएगा। हालांकि अभी से कुछ कहना मुनासिब न होगा, बिल गेट्स कंपनी के साथ हमें भी इस नए ओएस से काफी उम्मीदें हैं।

कनाडा की कंपनी ब्लैकबेरी, पासपोर्ट, क्लासिक और अन्य कई हैण्डसेटस् में डाटा सुरक्षा के साथ मार्केट में दोबारा वापसी करता दिखती है। यह तो नहीं कह सकते कि ब्लैकबेरी अभी पूरी तरह एंड्रॉएड को टक्कर देने की स्थिति में है परन्तु जैसा आज से वर्षभर पूर्व जान पड़ता था, यह कंपनी अभी पूरी तरह डूबी भी नहीं। 2015 में, ब्लैकबेरी के सैमसंग ख़ेमे में जाने का आसार हैं, जिसके बाद इस साल खेल देखने लायक होगा।

मोटे तौर पर यह कह सकते हैं कि 2015 एंड्रॉएड  का ही साल रहेगा पर दमख़म के साथ नए ख़िलाड़ी उभरते नज़र आएंगे।

 

Nismo smartwatch
निस्मो स्मार्टवॉच

8. वियरेबल होंगें पहुंच के भीतर

 

2014 में अनेक कंपनियों ने घड़ी के आकार में अपने वियरेबल लांच किए, परन्तु सस्ते वियरेबल देख़ने को नहीं मिले। स्पाइस पल्स एम9010 का ख़ास ज़िक्र करना बनता है क्योंकि यह एक ही स्मार्टवॉच थी जो 2014 में 3,999 रूपये में लांच की गई। बाकि सैमसंग का गैलेक्सी गियर, गैलेक्सी गियर 2, नियो, एलजी के ज़ीवॉच, मोटोरोला मोटो360, एसूस ज़ेनवॉच- लगभग सभी नए उत्पाद मंहगे ही रहे, यानि कि 15,000 रुपये से अधिक ही रहे।

2015 में एप्पल आईवॉच समेत दर्जनों नए स्मार्टवॉच लांच किए जाएंगे जिनमें से बहुत से एंड्रॉएड  वियर पर आधारित होंगे। वियरेबल के साथ गूगल ने नए डेवेलपर्स के लिए एंड्रॉएड  वियर नाम से एक नया ओएस डेवलपर्स के लिए मुहैया कराया है जिसके बाद 2015 के आख़िर तक इनके दामों में कुछ कमी आने की
संभावना है।

 

9. क्या होगी अधिक रैम?

 

2014 में 10,000 रुपये से कम क़ीमत में ऐसे कई सस्ते फ़ोन आए जिनमें रैम 1GB तक थी। साल के अंत तक 10,000 रुपये से कम कीमत पर ऐसे फ़ोन आने लगे जिनमें हमें दोगुनी रैम देखने को मिली जैसे 9,999 रुपये में एसूस ज़ेनफ़ोन 5 और सेलकान् सिलेनियम अल्ट्रा Q50 एवं 13,999 रुपये में ज़ोलो प्ले 8X-1100। लेकिन 9,999 रुपये की सीमा 2014 में लांघ ना सकीं स्मार्टफ़ोन कंपनियां। 2015 में इस गणित के बदलने के पूरे आसार हैं। आनेवाले महीनों में हमें 700 रूपये से 10,000 रूपये के बच ऐसे फ़ोन खरीदने के लिए मिलेंगे जिसनें बेहतर और तेज़ प्रोसेसिंग को सपोर्ट करता 2GB रैम होगी।

फ्लैगशिप फ़ोन की बात करें तो कमसकम 3GB या 4GB से कम रैम की उम्मीद रखना सही होगा, क्योंकि अधिकतर कंपनियां अधिक रैम और 64-बिट क्वालकॉम या ऑक्टा-कोर प्रोसेसर के इर्द-गिर्द ही अपने फ्लैगशिप फ़ोन बाजा़र में उतारेंगी। सोनी 4GB के साथ एक्सपीरिया ज़ी4 ला सकता है, सैमसंग इतने ही रैम को लेकर गैलेक्सी S6 और नोट 5 मार्केट में उतार सकता है। एचटीसी के भी 3GB रैम के साथ वन M9 लाने की उम्मीद है।

एप्पल की बात ठीक-ठीक कह पाना थोड़ा मुश्किल होगा क्योंकि जब अन्य कंपनियां इस साल अधिक रैम का सोच रही थीं, स्टीव जाब्स की कंपनी 1GB रैम के साथ आईफ़ोन लांच कर रही थी।

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9 गैजैट जिन्हें आप फिर शायद कभी ना देख पाएं

शटर-वाला टीवी
शटर-वाला टीवी

बचपन से हमने ऐसे कई गैजैट देखे और इस्तेमाल किए हैं जो आजकल बाज़ार में दिखाई नहीं देते, पर इनकी याद जैसे हमारे बचपन का अभिन्न हिस्सा थे, (या हैं)। मैं आज कुछ ऐसी ही 10 चीज़ो (गैजैट) को याद करने की कोशिश कर रहीं हूं जो मेरे बचपन (कॉलेज तक) का हिस्सा थे और जिन्हें मैं हमेशा एक मुस्कुराहट के साथ याद करुंगी।

शटर-वाला टीवी

हमारे घर में बीनाटोन का टीवी था जो एक लकड़ी के बने खास बक्से में आया था। इस टीवी में एक शटर था जिसमें एक ताला लगाने की सुविधा थी। बुधवार की रात को चित्रहार का कार्यक्रम देख़ने के लिए टीवी खोला जाता, और रात का समाचार बुलेटिन देख़ने के बाद टीवी का शटर डाल दिया जाता था।

आजकल के फ्लैट पैनल टीवी से कहीं अलग इस टीवी में ख़ास पिक्चर ट्यूब होती थी जिसे केथोड रे ट्यूब कहते हैं।

ऐसे टीवी डिजिटल सिग्नल की बजाय ऐनालॉग सिग्नल को पढ़ पाते थे और इनकी ख़ास बात हुआ करती थी इनमें लगने वाला एन्टिना। घर के ऊपर छत पर एन्टिना लगा कर उसे टीवी स्टेशन की दिशा में मोड़ना टीवी देखने का ही हिस्सा था।

पंचायत भवन में टीवी

1975-76 के दौरान टीवी भारत में नया-नया आया था और सरकारी स्कूलों में, पंचायत भवन में सरकार की मदद से टीवी के सेट् लगाए गए थे जिन पर सैटैलाइट डिश के ज़रिए दूरदर्शन ज्ञानवर्धक कार्यक्रम प्रसारित किया करता था। बाद में इसरो और नासा के साथ शुरु किया गया ये कार्यक्रम तो समाप्त हो गया परन्तु ये टीवी सेट् स्कूलों में ही रह गए।

गरमी की छुट्टियों में गांव के स्कूल के छोटे से मैदान में लगा सैटेलाइट का डिश एन्टिना मेरे कौतूहल का विषय काफ़ी साल तक बना रहा। कई बार शाम को दोस्तों के साथ और पूरे गांव के लोगों के साथ मैं कृषि दर्शन के भी दर्शन कर आई थी। पर हालिया वर्षों में पूरे गांव का साथ में बैठ कर टीवी देखना नज़र आया न कोई कृषि दर्शन देखता ही नज़र आया।

टू-इन-वन
टू-इन-वन

रेडियो और टू-इन-वन 

हमारे बच्चों को अमीन सयानी की आवाज़ और पिताजी का रविवार की सुबह विविध भारती का या रोज़ रात को बिनाका गीतमाला का इंतज़ार करना समझ नहीं आएगा। परन्तु हमें याद रहेगा बैटरी डाल कर रात के आठ बजे पिताजी और उनके दोस्तों का रेडियो पकड़ कर बैठ जाना। गांव के सफ़र पर निकलते वक्त और कुछ साथ हो नो हो एक ख़ास लेदर के बने कवर में रेडियो और पांच-छः बैटरी साथ रखना हम कभी नहीं भूले।

रेडियो के बाद इसकी जगह ले ली टू-इन-वन ने। मुझे याद है हमारे पास फिलिप्स का टू-इन-वन हुआ करता था- जिसमें इच्छानुसार रेडियो या फिर ऑडियो टेप लगाकर टेप रिकार्डर पर गाना सुन सकते थे। तकरीबन एक-दो किलो का यह पुराना गैजैट आज नहीं है फिर भी- गीत, आरज़ू, गाईड, पारसमणि आदि फिल्मों और टी-सीरीज़ के अनमोल रत्न के कैसेट (गीत) कभी भूलने नहीं देता।

वॉकमैन 

मैं सोनी के वॉकमैन फ़ोन की बात नहीं कर रही जिसे सोनी हाल ही में लाँच किया है, मैं बात कर रही हूं उस पोर्टेबल म्यूज़िक प्लेयर की जिसे हम पेन्सिल बैटरी डाल कर सफ़र में साथ लिए रहते थे कॉलेज के दिनों में।

इस गैजेट के पतन का कारण बना पहले एप्पल का एमपी3 प्लेयर और फिर बाद में, आज का सबसे ज़रुरी गैजेट, हमारा स्मार्टफोन।

विसीपी और विसीआर

विडियो कैसैट प्लेयर, शायद अभी भी काफी लोगों को याद होगा। सीडी प्लेयर के आने से पहले तक फिल्में देखने का जाना-माना तरीका था विडियो कैसेट प्लेयर।

गांव-देहात और छोटे शहरों में विडियो कैसैट प्लेयर की दुकान एक अच्छा काम हुआ करता था (जो 1980 के बाद सीडी किराये की दुकानों में तब्दील हो गए) जहां से किराये पर विडियो कैसैट प्लेयर और कैसैट किराये पर मिला करते थे। किसी-किसी दुकानों में टीवी तक किराये पर लिए जा सकते थे।

फ़ोन
फ़ोन

फोन-परिवार-गांव और फ़ोन

काले दिखने वाले भारी-भरकम तार वाले फोन पहले-पहल गांव के पोस्ट ऑफ़िसों में उपलब्ध हुए और बाद में कुछेक घरों तक पहुंचे। ऐसे में फोन किसी एक का ना हो कर पूरे गांव का, रिश्तेदारों का और पड़ोसियों का फोन बन गया था।

कॉलेज के दिनों में मेरे पैतृक गांव में एक ही टेलीफ़ोन था, जो गांव के बीच एक कपड़े की दुकान पर था। गांव में मां या किसी रिश्तेदार से बात करने के लिए फ़ोन कर यह बताना पड़ता था कि अमुक के घर से अमुक के लिए फ़ोन है, खबर पहुंचा दें, हम आधे घंटे बाद फिर से फ़ोन करेंगे।

बात के दौरान ही तय कर लिया जाता था कि अगला फ़ोन अगले रविवार शाम के 7 बजे आएगा।

धीरे-धीरे पहले घरों में इस तारवाले फ़ोन ने प्रवेश किया, फिर बाद में 1990 के दौरान यह तार-विहीन (वायरलेस) हो गया। आज फ़ोन का जगह घरों की बजाय हमारे पॉकेट हैं जहां हर किसी के पास अपना ख़ुद का एक टुनटुनिया है।

8-इंच, 5-इंच और 3.5-इंच के फ्लौपी डिस्क

8-इंच के फ्लौपी डिस्क के बारे में कुछ नहीं कहूंगी क्योंकि मैंने इन फ्लौपी डिस्क को सिर्फ देखा है, इस्तेमाल कभी नहीं किया। परन्तु 5-इंच और 3.5-इंच के फ्लौपी डिस्क मैने कुछ वर्षों तक इस्तेमाल किए हैं।

कॉलेज में पढ़ाई के वक्त 5-इंच फ्लौपी डिस्क में फाइल रखे जाते थे। कुछ फ्लौपी डिस्क को बूट डिस्क बनाया जाता था जिससे कम्पयूटर को चालू किया जा सके। कॉलेज छोड़ते-छोड़ते इन 5-इंच डिस्क का स्थान ले लिया 3.5-इंच के फ्लौपी डिस्क ने। तुलना की जाए तो ये 3.5-इंच वाले प्राणी मज़बूत जान थे और अधिक डाटा (यानि) फाइलें रख पाते थे। बैग में इनके मुड़ने-तुड़ने की आशंका भी कम ही थी

एमएस डॉस

अब जब फ्लौपी डिस्क को बूट डिस्क बनाने की बात हो ही रही है तो एमएस डॉस का ज़िक्र भी कर ही दूं। एमएस डॉस था माइक्रोसोफ्ट का डिस्क ऑपरेटिंग सिस्टम जिस पर कंप्यूटर पूरी तरह से निर्भर हुआ करते थे।

विंडोज़ तो काफ़ी देर में बाज़ार में आया जिसे कंपनियां कंप्यूटर में बेचने से पहले लोड कर देती थीं। पर उससे पहले 1980 में एमएस डॉस था, जिसे कम्पयूटर के साथ बेचा जाता था। कंप्यूटर ऑन कर के सबसे पहले यह डिस्क (जिस डिसिक में एमएस डॉस होता था उसे बूट डिस्क कहते थे।) डिस्क ड्राइव में डालना होता था।

कम्पयूटर बूट होने के बाद कमांड प्राँम्पट पर खुलता था जहां पहले से रटे गए कमांड के ज़रिए आप अपना काम करते थे। जैसे फाइल की डाइरेक्टरी बनाने के लिए mkdir इत्यादि।

पेजर

हम में से काफी लोग होंगे जिन्होंने पेजर का इस्तेमाल किया होगा। भारत में मोटोरोला को आज भी याद करने की वजह यह छोटे पेजर ही तो थे, जिन्हें कई लोग कमर की बेल्ट के साथ बांध कर रखना पसंद करते थे। पेजर के ज़रिए छोटे संदेशों का आदान-प्रदान होता था।

साल 2002 में मोटोरोला ने पेजर बनाने बंद कर दिए, उसके बाद साल 2004 में भारत में पेजर का व्यवहार भी बंद ही हो गया।

चित्र आभार: ajithprasad.comen.wikipedia.orgwww.turbosquid.com

गूगल को चुनौति देते हुए सैमसंग ने लाँच किया टाइज़न ज़ी1

सैमसंग टाइज़न ज़ी1
सैमसंग टाइज़न ज़ी1

साल 2015 के शुरुआत से ही सैमसंग ने अपने जलवों की छटा बिखेरनी शुरु कर दी है। अन्तर्राष्ट्रीय कन्ज़्यूमर इलोक्ट्रोनिक शो में आकार बदलने वाला टीवी, कर्वड टीवी और खास म्यूज़िक गैजैट पेश करने के बाद इस दक्षिण कोरियाई कंपनी ने गूगल, शियोमी और अन्य स्मार्टफोन बनानेवली कंपनियों को सामने बड़ी चुनौति पेश की है – टाइज़न ज़ी1।

पिछले हफ्ते सैमसंग ने अपना पहला और सस्ता फोन टाइज़न ज़ी1 लाँच किया। हालांकि स्पेक्स की दृष्टि से यह नया 4-ईंच का फोन कुछ बेहद खास ले कर नहीं आता, पर इसकी खास बात है एक नया ऑपरेटिंग सिस्टम (जिसे हम ओएस भी कहते हैं) जिसे टाइज़न कहा जाता है। यह ओएस सैमसंग का खुद का तैयार किया ऑपरेटिंग सिस्टम है, जिसको आधार बना कर सैमसंग ने पिछले वर्ष गैलैक्सी गियर स्मार्टवॉच मार्केट में लाँच किया था।

गूगल को खुली चुनौती है सैमसंग का टाइज़न  

जिस प्रकार एंड्राइड वन को हम फोन की बजाय गूगल की रणनीति के रुप में देख सकते हैं, उसी प्रकार टाइज़न को फ़ोन की बजाय सैमसंग की रणनीति के रूप में देखा जाना बेहद ज़रूरी है।

एप्पल के वर्लडवाइड डेवेलेपर कॉनफेरेन्स में एप्पल के सीईओ, टिम कुक ने एंड्राइड की धज्जियां उड़ाते हुए कहा कि एंड्राइड संसार का सबसे बड़ा ओएस है ज़रुर, पर काफ़ी सारे उपभोक्ता पुराने ओएस वर्ज़न पर काम करते हैं ना कि नए वर्ज़न पर। केवल 9 प्रतिशत उपभोक्ता ही एंड्राइड किटकैट पर हैं, जबकि एप्पल आईउएस पर त़रीबन 89 प्रतिशत आईफ़ोन उपभोक्ता हैं, कुक ने बताया। (साभार: बिज़नेस इनसाइडर)

कुक की कही बात ग़लत नहीं थी। गूगसल ने एंड्राइड ओएस लाँच कर मुफ्त मुहैया तो कर दिया, दिया परन्तु कंपंनियों द्वारा सस्ते फ़ोन अलग-अलग वर्ज़न के ओएस के साथ लाँच किए जा रहे थे, जिनके अपडेट्स देने में सबसे अधिक परेशानी गूगल को ही हो रही थी। साल 2014 में सस्ते फ़ोन के ओएस वर्ज़न में समानता लाने की दूरदृष्टि रखते हुए एंड्राइड वन को लाँच किया।

गौर करें कि सैमसंग गूगल के एंड्राइड ओएस का इस्तेमाल अपने फोन में करती है। सैमसंग नोट, गैलैक्सी, एज स्मार्टफोन और गैलैक्सी टैबलैट एंड्राइड ओएस पर ही चलते हैं।

गूगल के एंड्राइड के साथ सैमसंग ने स्मार्टफोन क्षेत्र में अबाध्य तरक्की की है और यह आज दुनिया के सबसे अधिक अपनाया जानेवाला फ़ोन कंपनी बन चुका है। जहां एक ओर यह तरक्की हुई है, वहीं इसके साथ सैमसंग की निर्भरता गूगल पर बढ़ी है। परन्तु रिश्ते हमेशा थोड़े टिकते हैं?

इसलिए ज़रूरी था टाइज़न

डिज़िटल ट्रेन्डस् की रिपोर्ट की मानें तो, सैमसंग एप्पल की भांति बड़ा और आत्मनिर्भर बनना चाहता है, परन्तु ऐसा करने का लिए इसे सबसे पहले गूगल के गराज से निकलने की ज़रुरत है। 2013 की एक फोर्बस् रिपोर्ट के अनुसार धीरे-घीरे गूगल ने एंड्राइड पर अपना कंट्रोल बढ़ा लिया है।

मोबाइल मार्केट पर कब्ज़ा बनाए रखने के लिए बेहद ज़रुरी है अपना ओएस लाँच करना और अपना स्वयं का एप स्टोर होना जहां आप एप्स बेच सकें। टाइज़न इस दिशा में सैमसंग का तीसरा प्रयास है।

बाडा ऑपरेटिंग सिस्टम
बाडा ऑपरेटिंग सिस्टम

जी हां, मैं टाइज़न को तीसरा प्रयास कह रही हूं! सैमसंग का प्रथम प्रयास था बाडा- कंपनी का अपना ओएस जो साल 2009 के डिसेम्बर में लाया गया (इस ओएस के साथ पहला फ़ोन 2010 के मोबाइल वर्लड कांफेरेन्स में लाँच किया गया।)

सैमसंग की कई कोशिशों को बावज़ूद यह ओएस कुछ खास धूम नहीं मचा सका। 2013 के फरवरी में सैमसंग ने घोषणा की कि वह आगे बाडा ओएस पर काम नहीं करेगा। बाद में सैमसंग ने बाडा को टाइज़न में मिलाने की कोशिश की।

इसी महीने सैमसंग ने अपने नए टचस्क्रीन रेक्स फीचर फ़ोन लाँच किए जो दिखने में एंड्राइड की तरह थे परन्तु बाडा पर काम नहीं करते थे। हालांकि यह फ़ोन नोकिया आशा फ़ोन के प्रतिद्वन्दी के रूप में उतारे गए थे, ये ज़ावा पर आधारित थे और सैमसंग टचविज़ इन्टरफेस का इस्तेमाल करते थे।

खास तौर पर भारतीय मार्केट को नज़र में रख कर बनाए गए इन फ़ोनों ने कोई बेहद खास सफलता हासिल नहीं की।

इस प्रकार टाइज़न सैमसंग का इस दिशा में तीसरा बड़ा प्रयास है।

क्या है टाइज़न मास्टर प्लान?

साल 2008-2009 की बात करें तो फ़ोन ही सब कुछ था, जो मार्केट में था। स्मार्टटीवी और स्मार्टवॉच दूर-दूर तक निगाहों में नहीं थे। टैबलेट क्षेत्र में तरक्की मिल सकेगी इसके कोई ठोस आधार नहीं थे। ओएस की बात करें तो एंड्राइड था जो गूगल ने मुफ्त मुहैया कराया था, एप्पल और ब्लैकबैरी किसी सूरत में अपना ओएस सैमसंग के साथ नहीं बांटते। माइक्रोसोफ्ट के पास फ़ोन के लिए कुछ खास था नहीं।

टाइज़न ऑपरेटिंग सिस्टम
टाइज़न ऑपरेटिंग सिस्टम

ऐसे में सैमसंग की एंड्राइड पर निर्भरता लाज़मी हो गई थी। पर पिछले दो वर्षों से स्थितियों में बदलाव आया है। स्मार्टफ़ोन बनानेवालों में (देशी कंपंनियों के आने के बाद से खास तौर पर) अभूतपूर्व प्रतिद्वंदिता देखने को मिल रही है। ऐसे में अपनी साख बनाए रखने के लिए ज़रुरी है कि सैमसंग अपना खुद का ओएस बनाए, जिस पर उसका खुद के कंट्रोल हो।

सैमसंग ने प्रथम टाइज़न ओएस को आधार बनाते हुए अपना स्मार्टवॉच लाँच किया उसके बाद स्मार्ट टीवी और अब एक स्मार्टफ़ोन। जहां स्मार्टफ़ोन क्षेत्र में पैठ बना पाना थोड़ा मुश्किल हो सकता है, स्मार्टवॉच और स्मार्ट टीवी के क्षेत्र में आगे बढ़ना सैमसंग के लिए काफ़ी आसान साबित होने के आसार हैं।

एंड्राइड के जैसा लुक, सैमसंग का जांचा-परखा टचविज़ इन्टरफ़ेस, एंड्राइड एप्स चला सकने की क्षमता- इन सबके साथ सैमसंग उपभोक्ता को वही अनुभव प्रदान करने की स्थिति में है, जो सैमसंग के एंड्राइड-आधारित गैलैक्सी फ़ोन के साथ मिलता है। तभी तो यह सैमसंग का मास्टर प्लान-सा प्रतीत होता है, जिस पर सैमसंग पिछले कमसकम 5-6 सालों से काम कर रहा है।

मिलें टाइज़न ज़ी1 से 

टाइज़न ज़ी1 एक 4-इंच डिस्पले स्क्रीन वाला फ़ोन है जिसका जिसका डिस्पले रिज़ोल्यूशन 800X480 पिक्सल्स है। इसमें दो सिम कार्ड एक साथ लगाए जा सकते हैं और यह फ़ोन दो-कोर (यानि ड्यूअल-कोर) प्रोसेसर पर काम करता है जिसकी स्पीड 1.2GHz है।

फ़ोन में 768MB का रैम है, 4GB की मेमरी है जिसे आप बढ़ाकर 32GB तक कर सकते हैं। इसमें 3 मेगापिक्लस एवं 0.3 मेगापिक्सल के दो कैमरे हैं। कैमरे में 1,500mAh की बैटरी है और टाइज़न ओएस पर इस फ़ोन पर आप एंड्राइड एप्स, यानि कि गूगल के प्ले स्टोर से डाउनलोड किए एप्स भी चला सकते हैं।

माइक्रोमैक्स कैनवस ए वन
माइक्रोमैक्स कैनवस ए वन

क्या है एंड्राइड वन में? 

चूंकि एंड्राइड वन फ़ोन अलग-अलग कंपनियों ने लाँच किए हैं, परन्तु यह फ़ोन गूगल हार्डवेयर निर्देशिका पर आधारित हैं। अतः सभी एंड्राइड वन फ़ोनों के बारे में ना लिखकर, किसी एक कंपनी के एंड्राइड वन फ़ोन के बारे में लिखना ठीक होगा।

माइक्रोमैक्स के कैनवस ए वन की बात करें तो, यह एक 4.5इंच का फ़ोन है जिसमें 480×854 का डिस्पले रिज़ोल्यूशन है। फ़ोन चार-कोर प्रोसेसर पर काम करता है जिसकी स्पीड 1.3GHz है और इसमें 1GB का रैम और 4GB की मेमरी है जिसे आप बढ़ाकर 32GB तक कर सकते हैं। इसमें 5 मेगापिक्लस एवं 2 मेगापिक्सल के दो कैमरे हैं। कैमरे में 1,700mAh की बैटरी है।

टाइज़न ज़ी की तुलना में एंड्राइड वन फ़ोन थोड़ा महंगा है। गौर करें जहां सैमसंग ने टाइज़न ज़ी की कीमत रखी है 5,700 रुपये, वहां गूगल एड्रांइड वन की कीमत कुछ 6,500 रुपये के आस-पास है।

कौन है बेहतर- सैमसंग टाइज़न ज़ी1 या माइक्रोमैक्स का एंड्राइड वन?

दोनों फ़ोन के स्पेक्स की तुलना करें तो टाइज़न ज़ी पीछे छूटता-सा लगता है, परन्तु क़म कीमत इसकी ख़ास पहचान है, जो लोगों को आकर्षित अवश्य करेगा।

देखना है कि नए लाँच होनेवाले फ़ोन के साथ टाइज़न ज़ी कैसा जवाब देगा। उम्मीद की जा रही है, कि एड्रांइड वन की आने वाली सीरिज़ (जो मार्च खत्म होने से पूर्व लाँच हो जाएगी) काफ़ी सस्ती होगी, और टाइज़न ज़ी को सही जवाब दे सकेगी।

10 point charter for Selection of Smart Cities

For the selection of Smart Cities in India, the government would ensure a 10-point charter. It will rate cities based on sanitation and credit worthiness for this.

1. City Master Plans wherever due and City Sanitation Plans

1. City Master Plans wherever due and City Sanitation Plans

2. Long Term Urban Development Plans for district headquarters focusing on an area of 25 km radius

3. Long Term City Mobility PlansCity specific strategies for promotion of renewable energy sources like solar and

4. City specific strategies for promotion of renewable energy sources like solar and wind power, waste to energy etc.

5. Regulatory bodies for pricing of utilities like water and power and assessment and revision of taxes from time to time to enhance resource baseTaking necessary initiatives for assessing credit worthiness of each city to mobilise resources from appropriate sources;

6. Taking necessary initiatives for assessing credit worthiness of each city to mobilise resources from appropriate sources

7. Promotion of water harvesting and water recycling on a large scale through necessary provisions by revising Building Bye-laws in line with emerging needs of cities and aspirations of people. Promoting citizens in urban planning , decision-making and management;

8. Promoting citizens in urban planning, decision-making and management, Capacity building in key disciplines; and

9. Capacity building in key disciplines10.Improving urban governance through adoption of ICT platforms to ensure accountability and transparency besides online delivery of various services.

10. Improving urban governance through adoption of ICT platforms to ensure accountability and transparency besides online delivery of various services.

See the press release: http://pib.nic.in/newsite/PrintRelease.aspx?relid=114695

FM Phase-Ill auctions and migration

Here is the PIB press release about Conduct of FM Phase-Ill auctions and migration (renewal) of Private FM Radio licenses from Phase-II to Phase-Ill
The Union Cabinet chaired by the Prime Minister, Shri Narendra Modi, today gave its approval for conduct of FM Phase-Ill auctions and migration (renewal) of Private FM Radio licenses from Phase-II to Phase-Ill in 69 existing cities for 135 channels. This will be on an ascending e-auction basis. Approval was also given to migration (renewal) of private FM Radio licenses from Phase-II to Phase-Ill on payment of migration fee according to TRAI recommendations.

As of now, with the implementation of two phases of private FM Radio, namely Phase I (1999-2000) and Phase II (2005-06), there are 243 private FM channels in operation in 86 cities of the country, spanning 26 States and 3 Union Territories.

The auction process will add an estimated revenue of over Rs. 550 crore to the National Exchequer on successful auctions of all proposed channels. Besides, it will beget the amount realized through the migration process which is dependent on the TRAI recommended formula, where migration fee is linked with the discovery of market prices through the FM Radio Phase III auction.

Roll out of the first batch of FM Radio Phase III auction will provide more channels to listeners with richer content in 69 existing cities.

बनारस को क्योटो बनाने की तैयारी शुरु, पहली बैठक सम्पन्न

1883 में बनारस
1883 में बनारस

प्राचीन शहर वाराणसी (बनारस) को हाई-टेक शहर क्योटो बनाने की प्रक्रिया शुरु हो गई है। इस हफ्ते क्योटो-वाराणसी संचालन समिती की पहली बैठक के साथ पहला यह प्रक्रिया अब शुरु कर दी गई है।

पहली बैठक में दोनों शहरों में समानताओं पर बातचीत हुई और प्राचीन शहर की ऐतिहासिक समृद्धि और संस्कृति को ध्यानमें रख कर पर्यटन और विकास की दिशा में कैसे प्रगति की जाए इस विषय पर चर्चा की गई।

दोंनों शहरों के बीच मौजूद समानताओं पर चर्चा हुई जिसमें से एक है यह दोनों शहर हर साल लाखों पर्यटकों को अपनी तरफ खींचते हैं। जहां सालाना 500 लाख पर्यटक क्योटो शहर (जिसे एक हज़ार तीर्थ स्थलों को शहर भी कहते हैं) आते हैं वहीं तकरीबन 50 लाख पर्यटक भातर के मंदिरों के शहर वाराणसी में गंगा के घाट घूमने आते हैं।

क्योटो शहर के विकास की पहल के तहत – संस्कृति की सुरक्षा, शहरी नियोजन में खास बदलाव, शहरी कूड़े में कमी करना तथा उसका उचित निपटारा करना, सड़कों में विज्ञापन  लगाने पर पूरी तरह रक लगाना, नदी तटों का विकास जैसे पदक्षेप शामिल किए गए थे।

साथ ही जैव उर्जा का विकास, जैव उर्जा उत्पादन संबंधित प्रकल्प लगाना, कूड़े से उर्जा (बिजली) बनाने की तकनीक का इस्तेमाल, घर से निकलने वाले कूड़े और म्यूनिसिपल कूड़े का उचित उपचार संबंधित प्रकल्पों का लगाना भी शामिल हैं।

वाराणसी को क्योटो बनाने की इस कवायद में भारत क्योटो से सीख लेते हुए, दोनों राष्ट्रों के बीच साथ में काम कर सकनेपर विचार होगा। दोनों राष्ट्रों के मध्य आर्थिक, तकनीकी और संस्थागत साझेदारी से यह विकास संभव होगा।

चित्र आभार:1883 में बनारस, एडविन लॉर्ड वीक्स

4के टीवी के लिए 4के सेट-टॉप-बॉक्स  

Samsung 4K curved TV
Samsung 4K curved TV

4के टीवी खरीदने वालों को अब पिक्चर क्वालिटी पर कोई समझौता नहीं करना पड़ेगा। 4के टीवी के लिए खास तौर पर इस्तेमाल किये जाने के लिए टाटास्काई ने लाँच किया है, नया  4के सेट-टॉप-बॉक्स।

अब तक 4के टीवी खरीदने वालों को फुलएडी (1080 X 1920 पिक्सल डिस्पले रिज़ोल्यूशन) सेट-टॉप-बॉक्स के साथ ही काम चलाना पड़ता था। अब 6,400 रुपये दे कर नए उपभोक्ता 4के सेट-टॉप-बॉक्स खरीद सकते हैं। मौजूदा उपभोक्ताओं थोड़ी-सी छूट दी गई है, 5,900 रुपये में मौजूदा उपभोक्ता यह फुलएडी के चार गुना अच्छी पिक्चर क्वालिटी का लाभ उठा सकते हैं।

इन्टरनेशनल कन्ज़्यूमर इलेक्ट्रॉनिक शो, 2014 में टीवी बनानेवाली कम्पनियों ने पहली बार 4के टीवी (यानि 3840 x 2160 पिक्सल डिस्पले रिज़ोल्यूशन) दुनिया के आगे पेश किऐ। उसके बाद साल के मध्य तक ये टीवी बिक्री के लिए आए, परन्तु केवल एक कंपनी ने कोरिया, जापान और भारत में इसे लाँच किया, काफी महंगे दामों पर। साल के खत्म होने से पहले (अगस्त में) अन्य कम्पनियाँ भी प्रतिस्पर्धा में उतरीं और इनकी बिक्री शुरु हुई और इनके दाम कम होने शुरु हुए।

Spectrum Auction to begin from 25th February

Notice Inviting Applications (NIA) for auction of Spectrum in 2100 MHz, 1800 MHz, 900 MHz and 800 MHz bands was issued by the Department of Telecommunications on 09-01-2015.

  • The details of 2100 MHz bands would be announced later.
  • Spectrum has been put on offer in 15 Service Areas (SAs) in 1800MHz band, 17 SAs in 900MHz and 20 SAs in 800MHz band.
  • Block size is 200 KHz (Paired) in 900 MHz & 1800 MHz bands; and 1.25 MHz (Paired) in 800 MHz band.
  • Validity of Spectrum in this auction shall be 20 years.
  • There is also option of deferred payment.
  • The auction format is simultaneous, multiple-round ascending auction.
  • NIA contains detailed terms and conditions regarding reserve price, pre-qualification conditions, Earnest Money Deposit (EMD), Auction Rules etc.
  • The last date for submission of application is 6th February 2015.
  • Auction is scheduled to commence on 25th February, 2015 and will be conducted on-line on URL- https://dot.mjunction.in
  • Total Spectrum put to auction is 103.75 MHz in 800 MHz band, 177.8 MHz in 900 MHz band and 99.2 MHz in 1800 MHz band.

कानों को नुकसान पहुंचा सकता है तेज़ आवाज़, जानिए बचने के 4 तरीके

हेडफ़ोन पर संगीत का मज़ा लेती सोनाक्क्षी सिन्हा; चित्र साभार सोनाक्क्षी सिन्हा के ट्विटर पोस्ट से
हेडफ़ोन पर संगीत का मज़ा लेती सोनाक्क्षी सिन्हा; चित्र साभार सोनाक्क्षी सिन्हा के ट्विटर पोस्ट से

तेज़ आवाज़ कान को पर्दों को हानि पहुंचा सकता है या नहीं यह काफ़ी समय से चर्चा का विषय बना रहा है। एप्पल आईपैड और अन्य म्यूज़िक गैजेट के आने के बाद से इस चर्चा में तेज़ी ही आई है।

हाल के वर्षों में फोन और टेबलट पर गाना सुनना जैसे एक आम बात बन गई है। ऐसे में यह जानना ज़रुरी हो जाता है कि क्या ऊंची आवाज़ में म्यूज़िक (संगीत) सुनने पर कानों के पर्दों को वाकई नुकसान पहुंच सकता है? यदि हां, तो इससे कैसे बचा जाए।

2014 में डब्लूएचओ (विश्व स्वास्थ्य संस्थान) द्वारा प्रकाशित इयर केयर मैनुअल (कान की देखभाल विषय पर पुस्तिका) में बताया गया है कि ऊंची आवाज़ कान के पास बजने से श्रवणशक्ति पर असर पड़ सकता है। इस मैनुअल के अनुसार “कान के पास बजनेवाले तेज़ संगीत का समय बढ़ने पर बहरेपन का ख़तरा भी बढ़ जाता है। ऐसा देखा गया है कि, इयरफ़ोन या हेडफ़ोन पर अधिकतम वोल्यूम पर 5 मिनट से अधिक देर संगीत सुनने पर श्रवणशक्ति पर बुरा असर पड़ता है। इससे बचने के लिए संगीत सुनते वक्त के बीच में छोटे-छोटे ब्रेक लिया जाना उचित है।” पूरी रिपोर्ट यहां पढ़ें

2014 में गार्डियन अख़बार में छपे एक रिपोर्ट में कान पर तेज़ ध्वनि के असर को विस्तार से समझाया गया है। इस रिपोर्ट के अनुसार “तेज़ आवाज़ से कान के अंदरुणी हिस्से के सूक्ष्म बालों, जिन्हें स्टेरियोसिलिका कहते हैं, उन्हें क्षति पहुंचाता है- जिसके कारण बहरेपन का ख़तरा पैदा हो जाता है। तेज़ ध्वनि से स्टेरियोसिलिका में कंपन पैदा होता है, जिससे उनमें संचारित वोल्टेज में बदलाव आता है। इस बदलाव की ख़बर तंत्रिकाएं ब्रेन तक पहुंचाती हैं।” इस रिपोर्ट के अनुसार, स्टेरियोसिलिका में लगातार कंपन पैदा कर वोल्टेज में बदलाव करने से बहरापन हो सकता है।

ऊंची ध्वनि से कानों को नुकसान पहुंचता है जानते हुए भी सफ़र के दौरान या काम करते समय संगीत सुनना आज हमारी आदत बन चुका हैं। ऐसे में क्या करें कि हमारे कानों को कोई नुकसान ना पहुंचे। हम आपको बताने जा रहे हैं कुछ तरीके –

1.  85 डेसिबल (ध्वनि को डेसिबल में मापा जाता है) से अधिक उंची ध्वनि में संगीत ना सुनें।

पोरटेबल स्पीकर्स
पोरटेबल स्पीकर्स

2. मोबाइल या टैबलेट पर संगीत सुनने की बजाय अपने साथ छोटे ब्लूटूथ या दूसरे स्पीकर ले रखें, और इनका इस्तेमाल करें।

3. काफ़ी देर तक हेडफोन लगा कर संगीत ना सुनें, बीच-बीच में ब्रेक लेते रहें। ऑस्टियोपैथिक पेडियाट्रिशियन (बच्चों के डॉक्टर) डॉ जेम्स इ, फॉय के अनुसार एक दिन में एमपी3 प्लेर या किसी भी अन्य गैजेट पर संगीत 60 मिनट से अधिक देर नहीं सुनना चाहिए। (स्त्रोत: अमरिकन ऑस्टियोपैथिक एसोसिएशन)

4. क्या आपने ऑटोमैटक वाल्यूम लेवलर के बारे में सुना है? यह गैजेट ध्वनि के प्रेशर को एक निश्चित सीमा के अंदर रखने में मदद करता है। कई कारों में यह सुविधा होती है, जहां ये लेवलर कार की गति के साथ संगीत या रेडियो की ध्वनि को घटाता या बढ़ाता है।

ISPs to Alert people who deal with Pirated Content

copyright Infringemnet
copyright Infringement

A new law in Canada now requires ISPs and VPNs are needed to issue alert to consumers who are dealing with pirated content.

This means the ISPs will track the user behavior related to copyright content and will issue copyright infringement notices to user is if the user downloads or probably such content. This means (1) user behavior will be monitored (2) ISPs won’t be liable for enabling the user to connect to such content already available on websites(3) users who use non-commercial file-sharing for propagation of content and information will face damages.

Source 1

With huge data being collected we are moving towards a ‘No Place To Hide’ World

The Governments are collecting all kinds of data related to the behavior of their citizen and their enemies worldwide with the help of cyber roadways. Edward Snowden, the American whistleblower who leaked classified information from the National Security Agency and Julian Assange Editor-In-Chief of WikiLeaks, have been talking about cyber-spying and surveillance for some time. Today I read the transcript of Ted talk of Lawyer and TED fellow Catherine Crump, who talks about the American police collecting data about citizen via cameras installed at public places.

She talks about the new trend that is in development now. The case of shooting of Michael Brown did mention that he was shot with some advanced military weapon. But it also raises a serious question about how an advanced military weapon meant for battlefield reached the small town of Missouri and landed in the hands of a policeman. This is something that is happening with the surveillance sector too she says.

This seems quite a bit difficult to understand as we know that most of the surveillance technologies and advanced surveillance weapons lies in the hands of governments (even when you talk about cyber weapons like viruses that attack a particular kind of project or technology, I am referring to Flame virus and the likes of this).

When I read the news on the Lizard Squad hacker group which recently made headlines for taking the claim of the hack of year 2014, Sony hack. This hacker group is offering DDoS attacks for a monthly fees (payable via BitCoin and PayPal) which sounds really scary. Because, this also means that anyone who can offer fees can get hacking done (or performed) on a specified target.

Remember this hack resulted in the world speculating that the movie The Interview was the reason of the hack that pointed at North Korea after which this week US imposed sanctions on North Korea.

Let me concentrate on what Crump has to say. She in a Ted Talk says that NSA-style mass surveillance is also “enabling local police departments to gather vast quantities of sensitive information” about each and every citizen in a way that was not possible before.

She talks the camera as a primary gadget that is hooked to the Internet. These surveillance cameras are installed everywhere and are equipped with something called the “Automatic License Plate Reader”. That means each camera n the traffic signal on the turn, on the gate of a residential area, on the entry and exit gates of the public transport, can record the data about the places a car or person goes. The scattered data thus collected will not make sense, but if the data is arranged to be in a particular order it ill reveal every detail about where you go, how long you stay here and what all you do in a day (and yes on which days.)

According to her, “local police departments are keeping records not just of people wanted for wrongdoing, but of every plate that passes them by, resulting in the collection of mass quantities of data about where Americans have gone.”

This detail takes me to an article I wrote on 8th August. “कहाँ तक बचेंगे कैमरे से, आप उसकी निगरानी में जो रहेंगे?” This was about proposed smart cities in India and the installation of surveillance cameras on roads and important places to catch culprits. The talk of Crump offers some information about what all could happen in the process of collecting data about culprits when data about  other citizen also gets collected and if one day the collector of the data says segregating the data is needed.

What Crump says gets amplified when to this data one adds the data that is collected through location reading is added. Your position on the globe (you will be somewhere on the globe always), and the places you visit and go to regularly will be traceable, making you always remain under surveillance. The difference however, is that in real world you will be unaware of what data is getting collected unlike the fiction world of Orwell, where citizen knew what data is being collected and how- which enabled them to take some precautionary steps.

This New World does look like a threatening place, with “No Place To Hide” as Glenn says while writing about Snowden and revelations.

Source 1

Source 2

Samsung Smart TVs fall in love with Linux, All TVs to run Tizen

samsung smart TV
samsung smart TV based on Tizen

All the Samsung Smart TVs in year 2015 will run on Tizen operating system (OS) which is based on the open source Linux platform.

Samsung has announced that all its “Smart TVs in 2015 will be equipped with its new platform built around the Tizen operating system.”

Tizen OS is Samsung’s own new operating system which is also a foot forward in the direction of moving away from Android OS, which is hugely popular choice in tablets and smartphones.

The new Tizen based smart TVs will let the users check team and player statistics during a game while watching TV at the same time. The TV remote and camera together would allow the user to play PlayStation games on the TV and the user would also be able to stream content from the smartphone to the TV and more (well this feature is already in few TVs and smartphones). The new feature also will enable the user to enjoy watching TV on mobile phone even when TV is switched off.

The TV will support Wi-Fi Direct and Bluetooth and will be able to share content across multiple devices.

Samsung already has its Gear smartwatches in the market with Tizen OS on board.